Tuesday, August 3, 2010

One sided

चाहे मुझे भी वो, ये क्या ज़रूरी है ?
इक मैं ही बहुत  हूँ , मोहब्बत-ए-सितम उठाने को...

ना ले नाम वो मेरा, ना शक्ल ही देखे मेरी,
किस्सा मेरी आशिकी का, होगा बहुत उन्हे रुलाने को...

गम नहीं, जो वो न दे तमाम  उम्र अपनी ,
एक लम्हा ही काफ़ी है, हाल-ए-दिल दिखाने को...

कुछ और वो देख भी ना पाएँगे,
एक दिल के बाद कुछ है ही नहीं उन्हे दिखाने को...

जो है तमन्ना उनकी, बर्बाद मुझे  करने की,
बार बार आबाद होऊंगा मैं , हर बार बर्बाद होने को...

रुके हैं, पर नहीं इन्तेजार उनकी हाँ का ,
बस एक बार कह दे, दिल से अपने  चले जाने को...

चाहे मुझे भी वो, ये क्या ज़रूरी है ?
इक मैं ही काफ़ी हूँ , मोहब्बत-ए-सितम उठाने को...

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