Friday, October 26, 2018

बेग़ाना

ज़िंदगी की राह पे,
मुश्किलों से लड़ के,
कहीं हार के, कही जीत के,
कभी हंस के, कभी रो के,
तनहा ही सही, बढा तो जा रहा था ,
फिर जानें कहाँ से,
मेरी तनहियों को मिटा कर,
हार को भी जीत बनाकर,
आंशुओं को मोती में ढालकर,
तुम साथ मेरे आ गए

तपती मरुस्थल भूमि पर,
तन अग़न को मन अग़न से बुझाकर,
कभी तूफ़ान में उड़कर,
कभी लहरों में बहकर,
थका ही  सही, रुका तो ना था मैं,
तभी मंद हवा सी,
मेरी हर थकान मिटाकर,
शूल को फूल बनाकर,
चाहत की बारिश कराकर,
तुम साँसों में समा गए

तुमसे रिश्ता जोड़कर,
आँखों में ख़्वाब के सजाकर,
सपनो के गगन में,
इस दिल की हार धड़कन में,
बस तो तुमको लिया था,
फिर जाने क्यों,
हाथ मेरा छोड़,
तन्हाई की घूँट मुझे पिला,
आँखों को रुला,
अपना होते हुए भी,
तुम बेग़ाना मुझे बना गए

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